काजल का इतिहास: श्रृंगार नहीं नजर बट्टू था काजल, इस्लाम से जुड़ा है इतिहास, जानें सुरमा और काजल में क्या है अंतर?

History Of Kajal (काजल का इतिहास): दुनियाभर में अगर किसी कॉस्मेटिक प्रोडक्ट का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है तो वो है काजल। सदियों से सूरमा और काजल हमारे आंखों की सुंदरता बढ़ाते आ रहे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि काजल लगाने की शुरुआत कब हुई थी? इस्लामिक देशों में पुरुष काजल क्यों लगाते हैं? काजल और सुरमा में क्या अंतर है? और काजल कितने तरह से लगाए जाते हैं? आइये आज आपके हर सवाल का जवाब यहां जानते हैं।

Explained History Of Kajal Or Surma In Hindi

Explained History Of Kajal Or Surma In Hindi

History Of Kajal (काजल का इतिहास): एक तो कातिल सी नजर, ऊपर से काजल का कहर.. इस तरह की शायरियां तो आपने खूब सुनी होंगी। जब एक शायर किसी महिला के आंखों की खूबसूरती का बखान करता है तो कजरारी आंखों का जिक्र अपने आप हो ही जाता है। अब कजरारी आंखों के जादू से शायद ही कोई बच पाया है। कजरा मोहब्बत वाला.. ये गाना इस बात का सबूत है कि शायर क्या गीतकार भी कजरारी आंखों पर गीत लिखते नहीं थकते हैं। कहते हैं न, किसी भी महिला के सौंदर्य को निखारने के लिए एक काजल ही काफी है। काजल, जिसे शायद आप सुरमा या कान माई या फिर कातुक के नाम से जानते हैं। ये काजल सुहागिन के सोलह श्रृंगार का भी हिस्सा है और बुरी नजर से बचाने वाले नजर बट्टू का भी। घर में छोटा बच्चा हो तो माएं उन्हें रोज काजल का टीका करती हैं। बेटी की विदाई हो तो मां उसे काजल लगाना नहीं भूलती। लेकिन क्या आप इस काली चीज के इतिहास से वाकिफ हैं? क्या आप जानते हैं कि इस्लाम में पुरुष काजल क्यों लगाते हैं? क्या आपको पता है कि काजल का इतिहास हिंदुस्तान नहीं बल्कि मिश्र से जुड़ा हुआ है। इतना ही नहीं, काजल के अलग-अलग नाम, वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व, काजल और सुरमा में अंतर, काजल लगाने के तरीके.. शायद ही आपको आपको इसकी जानकारी हो। आज हम खास आपके लिए काजल और सुरमे से जुड़े हर तरह के सवालों के जवाब लेकर आए हैं।

कितना पुराना है काजल का इतिहास?

काजल, ये एक अरबी शब्द है, जिसे अरबी नाम कुहल से लिया गया है। भले ही काजल की शब्दावली अरबी मूल की है लेकिन इतिहासकारों का मानना है इसे पहली बार मिश्र में करीब 3100 ईसा पूर्व पहले से इस्तेमाल किया जा रहा है। दरअसल, मिश्र देश के लोग सजने-संवरने के काफी ज्यादा शौकीन थे। सबसे पहले काजल का इस्तेमाल होने के प्रमाण यहीं पर देखने को मिलता है। शुरुआत में तो काजल का इस्तेमाल आंखों से जुड़ी समस्याओं को ठीक करने के लिए किया जाता था। पहले के समय के लोगों का ये मानना था काजल लगाने से आंखों को सूरज की रौशनी से कोई नुकसान नहीं पहुंचता। उस समय में काजल का इस्तेमाल सिर्फ आंखों को सजाने के लिए नहीं बल्कि दवा के रूप में किया जाता था।

मिश्र ही नहीं अफ्रीका और दक्षिण एशिया से भी जुड़ा है काजल का इतिहास -

मिश्र के साथ-साथ काजल का इस्तेमाल हमें अफ्रीकी देशों की आदिवासी कबीलों में देखने को मिलता है। अफ्रीका में रहने वाले आदिवासी लोग काजल को सिर्फ आंखों पर ही नहीं बल्कि शरीर के कुछ अन्य हिस्सों, जैसे माथे और नाक पर भी लगाया करते थे। इसके अलावा इतिहासकारों को दक्षिण एशिया में भी काजल के इस्तेमाल के प्रमाण देखने को मिले हैं।

भारत में काजल का धार्मिक महत्व

भारत में तो काजल श्रृंगार के लिए ही नहीं बल्कि आस्था के लिए बहुत मायने रखता है। धार्मिक मान्यताएं कहती हैं कि बचपन से लेकर बड़े होने तक, हर शुभ काम में काजल लगाना चाहिए। जन्म के बाद छठी के दिन बच्चों की आखों में उनकी बुआ काजल लागाती हैं, वहीं शादी के समय भी कई जगहों पर काजल लगाने का रिवाज हैं। भारत के सभी पारंपरिक और सांस्कृतिक कलाकारों द्वारा भी काजल का इस्तेमाल किया जाता है।

भारतीय कला से काजल का जुड़ाव

भारत में काजल सिर्फ श्रृंगार ही नहीं कला में भी चार चांद लगाता है। भरतनाट्यम और कथकली नर्तकियों के अलावा ठुमरी-दादरा करने वाले कलाकारों की आंखें भी काजल से रंगी हुई होती हैं। भारतीय रंगमंच पर पारंपरिक नृत्य करने वाले कलाकारों का काजल लगाना लगभग अनिवार्य है।

आंखों में सुरमा क्यों लगाते हैं मुसलमान पुरुष?

कहा जाता है कि पैगंबर मुहम्मद रात को सोने से पहले आंखों में सुरमा लगाया करते थे, ताकि वो देर तक आंखों में टिका रहे और आंखों को फायदा पहुंचे। आज के दौर में भी जब हम मुसलमान पुरुष के छवि कि कल्पना करते हैं तो उनके पहनावे के साथ सुरमा लगी आंखों की आकृति भी उभरने लगती है। फिल्में हो या टीवी सीरियल्स, जिसमें भी मुसलमान लड़के दिखाए जाते हैं, उसकी आंखों में सुरमा लगा होता है। फिल्म रईस में शाहरुख खान ने और पद्मावत में रणवीर सिंह ने भी सुरमा लगाया था। शादी-ब्याह या धार्मिक रीति रिवाज के दौरान भी मुसलमान पुरुष सुरमा लगाए दिखते हैं। दरअसल, वो ऐसा करके एक तरह से विरासत में मिली रीति को आगे बढ़ा रहे होते हैं। इस्लाम में मुसलमान पुरुषों के लिए सुरमा लगाना सुन्नत बताया गया है। सुन्नत यानी वो बातें जिनपर मुस्लमानों को अमल करना है।

प्राचीन काल में कैसे बनता था काजल?

पहले के समय में काजल को बादाम की रास, सीसा, गुलाब की पंखुड़ियां, खजूर की गुठलियों की राख से बनाया जाता था। काजल में लस लाने के लिए शहद और मगरमच्छ के गोबर का इस्तेमाल किया जाता था।

भारत में काजल के अलग-अलग नाम

काजल का इस्तेमाल भारत की महिलाओं में बड़े चाव से किया जाता है। बता दें कि भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है। पंजाबी और उर्दू भाषा में लोग इसे सुरमा कहते हैं। वहीं, कन्नड़ में इस काडिगे, तमिल में कान माई, तेलुगू में कातुक और मलयालम भाषा में इसे कन्माशी के नाम से पुकारा जाता है। इतने नाम ही बताते हैं कि भारत में महिलाओं के बीच काजल कितना प्रसिद्ध है। इतना ही नहीं काजल महिलाओं के सोलह श्रृंगार का हिस्सा है, काजल के बिना महिला के श्रृंगार को अधूरा कहा जाता है।

क्या होता है सुरमा?

सुरमा एक तरह का आई प्रोडक्ट है, जिसे काजल की तरह आंखों पर लगाया जाता है। यह भारत का बहुत ही पारंपरिक कॉस्मेटिक प्रोडक्ट है, जो पाउडर की तरह होता है। कहा जाता है इसे बनाने के लिए अरब सागर में स्थित कोहिनूर नानक पत्थर का इस्तेमाल किया जाता है। इसे सुरमेदानी की सहायता से लगाया जाता है।

काजल और सुरमा में क्या अंतर है?

1) सुरमा पाउडर की तरह होता है जबकि काजल लिक्विड कॉस्मेटिक प्रोडक्ट है।

2) सुरमा को कोहिनूर के पत्थर की सहायता से बनाया जाता है। वहीं, काजल को सुरमा की सहायता से बनाया जाता है।

3) सुरमा को आंखों पर सिंपल तरीके से लगाया जाता है। जबकि आप काजल से डिफरेंट तरीके से अपनी आंखों पर अप्लाई कर सकती हैं।

दीवाली की रात काजल लगाने के बारे में क्या कहता है धर्म और विज्ञान?

बड़े बुजुर्ग पहले के समय से ही दीवाली के दिन एक उपाय करते आ रहे हैं। इस दिन नजर उतारने का उपाय बेहद खास माना जाता हैं। घर के सभी सदस्यों को एक साथ बिठाकर राई, नमक और खड़ी लाल मिर्च से नजर उतारते हैं। साथ ही ऐसा माना जाता है कि इस दिन काजल लगाने से साल भर कभी नेत्र रोग नहीं होते। इतना ही नहीं, काजल लगाने से परिवार को बुरी नजर भी नहीं लगती है। वहीं, वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि दिवाली के दिन होने वाले प्रदूषण से हमारी आंखों को बहुत नुकसान पहुंचता है, इसलिए रात में दीपक से बने हुए काजल लगाने से आंखें शुद्ध हो जाती हैं। इन सभी कारणों की वजह से दिवाली की रात में काजल लगाने का विशेष महत्व होता है।

घर पर कैसे बनाएं काजल?

काजल को घर पर बनाने के लिए आपको घी या तेल (तिल या सरसों का तेल), बत्ती वाला बड़ा दीपक और स्टील या चांदी का कटोरा चाहिए। अगर आप इसे आजमाना चाहते हैं, तो कम घी से शुरुआत करें। आप लगभग 10 चम्मच घी या 50 मिलीलीटर तेल ले सकते हैं। दीये में ज्यादा से ज्यादा घी या तेल डालकर जलाएं। थोड़ा घी अलग रख दें। दीये के ऊपर कटोरा ऐसे रखकर पकड़ें कि उसका कालापन कटोरे पर लगे। जैसे ही घी या तेल जलता है, कटोरी में एक काला पाउडर बन जाता है। जो घी एक तरफ रखा था, उसमें थोड़ा-थोड़ा करके काला पाउडर मिला सकते हैं। यह ज्यादा पतला नहीं होना चाहिए। इस तरह चिकना पेस्ट तैयार हो जाएगा। काजल को दो घंटे के लिए फ्रिज में रख दें। फिर कमरे के तापमान पर स्टोर करें। यह अब उपयोग के लिए तैयार है। घर में बना काजल आंखों को नम रखता है।

घर पर बने काजल के फायदे जानते हैं?

भारत में पुराने जमाने में काजल हमेशा घर पर ही बनाई जाती थी। आज भी कई लोग घर में ही काजल बनाते हैं। इसे मक्खन (घी) या तेल से बनाया जाता है और इसमें कोई केमिकल नहीं होता। इस तरह से बनाया जाने वाला काजल लोकप्रिय रहा है, क्योंकि इसे आंखों के लिए अच्छा माना जाता है। यह काजल न सिर्फ आंखों की रोशनी में सुधार करता है, बल्कि आंखों को ठंडक भी देता है। साथ ही यह आंखों की मसल्स को मजबूत करता है। कई मॉडर्न आई ब्यूटी प्रोडक्ट्स के मुकाबले घर पर बने काजल में लेड जैसे हानिकारक केमिकल नहीं होते। कहा जाता है कि घर में बने काजल की शेल्फ लाइफ लंबी होती है। घर पर काजल बनाते समय इस बात का खास ध्यान रखें कि आप जो तेल इस्तेमाल कर रहे हैं वो बहुत पुराना न हो।

नए दौर के काजल

आज बाजार में कई तरह से काजल मौजूद हैं। उनमें से कुछ रंग-बिरंगे हैं। कुछ ऐसे हैं जो खास तौर पर आंखों को हाइलाइट करने के काम आते हैं। आज बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने ब्रांड का काजल बेचती हैं। उनमें कई काजल ऐसे हैं जो 12 घंटों तक जैसे के तैसे ही बने रहते हैं। हालांकि, इन काजल में कई तरह के केमिकल का प्रयोग होता है, जिस वजह से आंखें खराब हो जाती हैं। ऐसे में आपको अपने लिए एक परफेक्ट और बिना केमिकल वाला काजल चुनना चाहिए।

काजल कितने तरह के होते हैं?

आपको बाजार में काजल के कई तरह के प्रोडक्ट आसानी से मिल जाएंगे जैसे- लिक्विड काजल, जेल काजल, स्टिक काजल, पेंसिल काजल आदि। आप इसका काजल को अपनी पसंद के हिसाब से खरीद सकती हैं। वहीं, अगर आपको काले काजल के जगह कलर्ड काजल भी मिल जाएंगे। आप इसे डिफरेंट आउटफिट्स की तरह इस्तेमाल कर सकती हैं।

काजल लगाने के अलग-अलग तरीके-

1) कैट-आई लुक

छोटी आंखों पर इस तरह का कैट-आई लुक बेहद खूबसूरत नजर आता है। इस तरह के आई लुक में विंग को आप ज्यादा लम्बा न लेकर जाए नहीं तो आपका आई लुक अजीब नजर आने लगेगा। साथ ही इनर कार्नर के लिए आप कैट लुक को कम्प्लीट करने के लिए अन्दर की तरफ टिप जरूर बनाएं।

2) विंग आई लुक

अगर आप केवल ब्लैक कलर का काजल लगाना पसंद करती हैं तो सबसे पहले आप आंखों की टाइट-लाइनिंग करें और फिर आईलाइनर लगाने के बाद काजल लगाएं। बता दें कि आप केवल आंखों की वाटर लाइन पर ही काजल को लगाएं और आखिर में जाकर उसे आउटर कार्नर की तरफ से हल्का सा स्मज कर विंग के साथ जोड़ दें। स्मज करने के लिए आप पतले स्म्जर ब्रश का इस्तेमाल कर सकती हैं। वहीं आंखों के लिड एरिया पर आप सबसे पहले ब्राउन न्यूड कलर की आईशैडो से बेस जरूर तैयार करें ताकि आंखों को एक परफेक्ट डेप्थ मिल जाएं।

3) गोथिक आइज

गोथिक आइस पाने के लिए, आपको अपनी आंखों पर गहरे काले रंग का काजल लगाना होगा। इसके बाद, आंखों के ऊपर और नीचे दोनों तरफ की पलकों पर लाइन पर एक मोटी लाइन बना लें। आपका गोथिक आई लुक तैयार है।

4) स्मोकी आइज

स्मोकी आइज पाने के लिए, ऊपर की पलकों की लाइन, नीचे की पलकों की लाइन और दोनों आंखों के अंदर के कोने से काजल लगाना शुरू करें। इसके लिए आप पॉइन्टड ब्रश या फ्लैट ब्रश का इस्तेमाल कर सकते है। इसे लगाने के बाद, अपने पलकों के बाहरी कोने पर छोटा वी बना लें।

5) कलरफुल आई लुक

काजल लगाने के कई तरीके होते हैं। वहीं आप अगर कलरफुल काजल लगा रही हैं तो उसे हल्का सा स्मज जरूर कर लें और इनर कार्नर की तरफ आप गोल्डन कलर की जगह कोई दूसरा ब्राइट कलर चुनें। ऐसा करने से आपका आई लुक बेहद खूबसूरत नजर आएगा।

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Srishti author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर कॉपी एडिटर कार्यरत हूं। मूल रूप से बिहार की रहने वाली हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में मेरी सबसे ज्यादा दिलचस्पी...और देखें

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